क्या करूं मैं ऐसा ही हूं...

Monday, January 9, 2012

वह तो होना ही था

     2011 में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। इनका श्रेय लेने वालों मे सारा साल शीत युद्ध चले, लेकिन सच्चाई कुछ और है। हालात ऐसे बने हुए थे कि वह तो होना ही था।
बंगाल  में वामपंथियों का लगभग तीन दशन के राज का हार के साथ रिकार्ड टूट गया। लोग धीरे-धीरे जागरूक हो रहे हैं। वैसे भी परिवर्तन प्रकृति का नियम है। बिल्ली के भाग्य का छिक्का टूट गया और दीदी जीत गई। लगातार मीठा खाने के बाद नमकीन खाने को दिल कर ही जाता है। जीतना क्या है? वह तो होना था।
     पूर्व दूरसंचार मंत्री राजा ने इतना बेशुमार धन खाया कि जनता और मीडिया की नजरों में आ गए। सरकार को मजबूरन सख्ती दिखानी पड़ी। अब तिहाड़ की शोभा बढ़ा रहे हैं। इसमें कार्रवाई कहां हुई? काम ऐसे अच्छे किए थे कि वह तो होना ही था।
     राजा के व्यवसायी मित्र कलमाड़ी को जेल भेजने के पीछे केंद्र अपनी पीठ थपथपा रहा है। मौके-बेमौके बोल पड़ते हैं हमें भ्रष्टचार कतई सहन नहीं। व्यवसायी मित्र इसलिए कि दोनों ने एक जैसे ही काम को अंजाम दिया था। दोषी के खिलाफ कार्रवाई नहीं तो और क्या किया जाएगा? जेल गए। वह तो होना ही था।
      ओसामा बिन लादेन के पीछे अमेरिका ने तोरा-बोरा की पहाडिय़ों की खान छान मारी। दस साल पीछे पड़े रहे, लेकिन शेर अपनी गुफा में नहीं मिला। खतरा हुआ तो पड़ोसी की मांद में जा घुसा। पाकिस्तान भी अमेरिका को भारत की तरह बेवकूफ नहीं बना सका। ढूंढ़कर उसी की मांद में शिकार कर दिया। वह तो होना ही था।
     सदियों से गुलामी झेलने वाली जनता को आजादी के बाद भी आजादी नहीं मिली। हर काम के लिए पैसे मांगना जैसे अधिकारियों का जन्मसिद्ध अधिकार बन गया था। अन्ना ने आवाज उठाई तो सारा देश उठ खड़ा हुआ। तंग जो आ चुके थे। वह तो होना ही था।
     कालेधन की वापसी के लिए बाबा रामदेव भी साधकों के साथ रामलीला मैदान में आ डटे। दुर्भाग्य से उस दिन रामलीला नहीं रावणलीला का मंचन होना था। शायद यही बात बाबा को पता नहीं थी। वैसे भी ईमानदार नेता अपनी असलियत जनता के सामने आने से लज्जाने का नाटक करते हैं। शायद लज्जा होती तो ऐसे काम ही नहीं करते। रामलीला मैदान में रावणलीला का सफल मंचन हो गया। चिदंबरम और सिब्बल ने जोश में आकर तालियां बजा दी। वह तो होना ही था। उनसे देश को उम्मीदें भी वैसी ही थीं?
     अक्तूबर में दिल को ठेस लगाकर जगजीत सिंह न जाने कहां चले गए? उनकी गजलों पर झूमें हैं तो खोने का दुख तो होना ही था। दिसंबर में सदाबहार गाइड आनंद साहब चले गए। दुनिया गाइड विहीन हो गई। वह तो होना ही था।  जब सरकार ने मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में 51 फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव रखा तो विपक्ष समेत पूरे देश ने विरोध किया। बेरोजगारी तो पहले ही अधिक है। आखिर और कितने दुकानदारों को बेरोजगार होने देते। विरोध के परिणामश्वरूप सरकार को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। वह तो होना ही था। ऐसे ही सोशल साइट्स पर बैन लगाने का प्रस्ताव भी वापस लेना पड़ा।
     पाकिस्तान में मेमोगेट सैकेंडल चर्चा में है। सेना के डर से गुपचुप तरीके से सरकार ने अपना रोना अमेरिका के आगे रो दिया। सेना से डर भी कोई झूठा नहीं है। कई बार तख्ता पलट हुए हैं। अब सेना और सरकार आमने-सामने हैं। वह तो होना ही था। अन्ना तीसरी बार मुंबई में अनशन पर बैठ गए। सरकार समय बिताने में लगी रही। आखिरी दिन आधी रात को लोकपाल अटक गया। राजनेताओं का इतिहास ऐसा है कि उन्होंने कुछ भी अपेक्षाओं के विपरित नहीं किया। अपने खिलाफ कोई कार्रवाई थोड़े ही चाहता है। लोकपाल बिल का मुद्दा एक बार के लिए लटक गया। वह तो होना ही था। 


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