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Monday, April 23, 2012

हरियाणा में स्कूली शिक्षा


     आर्थिक रूप से समर्थ होने के बाद भी हरियाणा में शिक्षा का वह स्तर नहीं है, जो होना चाहिए था। इसका स्पष्ट कारण है कि प्रदेश में कोई शिक्षा नीति ही नहीं है। अप्रैल 11 को जारी हुए हरियाणा स्कूल एजूकेशन गु्रप सी सर्विस रूल्स-2012 से साफ हो गया है कि प्रदेश में योग्य शिक्षकों की नियुक्ति का कोई मानक नहीं है। जब योग्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होगी तो किस प्रकार उत्तम शिक्षा का ख्वाब पाला जा सकता है।
     शिक्षक भर्ती का मानक, मिड-डे मील,  सिलेबस और परीक्षा स्वरूप में नित नए परिवर्तनों से प्रदेश की शिक्षा में अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। नए रूल्स के मुताबिक कोई भी अयोग्य उम्मीदवार राजनीतिक पहुंच के कारण आसानी से शिक्षक नियुक्त हो सकता है। नए रूल्स में शिक्षक भर्ती में राज्य स्तरीय पात्रता टेस्ट को समाप्त कर केवल चार साल के अध्यापन अनुभव को ही न्यूनतम योग्यता निर्धारित किया गया है। 000 साल पहले सरकार ने योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए राज्य स्तरीय टेस्ट अनिवार्य किया था। अब सरकार ने इस टेस्ट को दरकिनार कर इसकी वैधता पर ही सवाल उठा दिया है। सवाल यह है कि जब चार साल का अध्यापन का अनुभव ही न्यूनतम योग्यता है तो 00 साल पहले यह टेस्ट क्यों अनिवार्य किया गया? वर्तमान में शिक्षक भर्ती की न्यूनतम योग्यता चार का अध्यापन अनुभव किसी भी सहायता प्राप्त स्कूल से आसानी से पैसे से प्राप्त किया जा सकता है।
     नए सर्विस रूल्स में पहले भर्ती के बाद तीन साल की अवधि में राज्य स्तरीय टेट पास करना अनिवार्य किया गया था। बाद में इसे समाप्त कर केवल चार साल का अनुभव ही  न्यूनतम योग्यता निर्धारित कर दिया। प्रदेश में शिक्षक नियुक्ति को जो नया मानक बनाया गया है उससे प्रदेश की शिक्षा स्थिति और बिगड़ेगी। शिक्षक भर्ती की न्यूनतम योग्यता भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और योग्य पात्र उम्मीदवार को उसके हक से दूर करने वाली है। प्रदेश में भाई-भतीजावाद  और क्षेत्रवाद पहले ही चरम पर है। नए सर्विस रूल्स प्रदेश की शिक्षा को दो प्रकार से नुकसान पहुंचाएंगे। एक तो अयोग्य शिक्षकों की भर्ती को बढ़ावा मिलेगा जो सीधे प्रदेश के शिक्षा के स्तर के लिए घातक होगा। हरियाणा में पहले ही राजकीय स्कूल संसाधनों, शिक्षकों और पढ़ाई न होने के कारण विद्यार्थियों की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में अगर अयोग्य शिक्षक भर्ती होंगे तो विद्यार्थियों की राजकीय स्कूलों में संख्या और तेजी से घटेगी। दूसरा अयोग्य का चुनाव होने से योग्य और पात्र उम्मीदवारों में निराशा पनपेगी होगी। हरियाणा सरकार पहले ही पात्र उम्मीदवारों के भर्ती करने के दबाव को झेल रही है। राज्य स्तरीय पात्रता टेस्ट की महत्ता कम होने के कारण टेस्ट के प्रति भी उम्मीदवारों का क्रेज कम होगा। शिक्षा नीति न होने के कारण अब गरीब लोग भी हैसियत न होने के बावजूद अपने बच्चों को नीजि स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं।
      13 मई 2011 से   प्रदेश के राजकीय स्कूलों में लागू हुए मिड-डे मील भी राजकीय स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या नहीं बढ़ा पाया। प्रदेश में यह धारणा बच चुकी है कि राजकीय स्कूल केवल दिहाड़ीदार मजदूरों के बच्चों के लिए हैं। मिड-डे मील के कारण स्कूलों में दोपहर में व्यवस्था देखी जा सकती है। सरकार ने भले ही आरटीई लागू कर दिया हो लेकिन सरकारी स्कूलों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। सरकार की अनदेखी, लापरवाही, राजनीतिक हितों के पोषण और उदासीनता के कारण निजी स्कूलों की भरमार हो गई है। अगर सरकारी स्कूलों के समानांतर निजी शिक्षा खड़ी हुई है और खूब बिक रही है तो यह केवल सरकार और सरकारी नीतियों की विफलता है। सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या घटने और निजी शिक्षा के तेजी से पनपने के लिए केवल सरकार उत्तरदायी है। निजी स्कूलों में भेजना बच्चों की मजबूरी बन चुकी है। लोग अपनी हैसियत न होने के बावजूद बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं। अगर सरकार आरटीई, मिड-डे मील और योग्य शिक्षकों की भर्ती में पारदर्शिता रख पाती तो राजकीय स्कूलों की यह स्थिति नहीं होती।