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Saturday, December 3, 2011

विरोध के लिए विरोध क्यों?

 कांग्रेस ने मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश  ( एफडीआई) की अनुमति देने का प्रस्ताव क्या रख दिया, भाजपा व दूसरे विपक्षी दलों को हल्ला मचाने का मोका मिल गया.  एफडीआई के विरोध करने वालों में अकेली भाजपा ही नहीं है. उसके साथ तृणमूल कांग्रेस, वाम दल और कुछ कांग्रेसी नेता भी शामिल हैं.  विरोध इतने जबरदस्त तरीके से किया जा रहा हैं की बहस के की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती.
एफडीआई का सबसे अधिक विरोध भाजपा कर रही है .  उसका तर्क है कि मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में एफडीआई के आने से देश के करीब 2  करोड़ खुदरा व्यापारी प्रभावित होंगे और महंगाई बढेगी. भाजपा कि कुछ आशंकाएं  सही भी हैं. लेकिन भाजपा इस मुद्दे को सोची समझी रणनीति के तहत सियाशी रंग देने में लगी है. वह भाजपा ही थी जिसने मई 2002 में मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में 100 फीसदी  एफडीआई का प्रस्ताव रखा था. भाजपा देश को बताए कि यही एफडीआई उस समय देश के लिए लाभदायक किस प्रकार था? तात्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और वाणिज्य और उद्योग मंत्री मुरासोली मारन ने 100  फीसदी एफडीआई का प्रस्ताव रखा था. आखिर ये कैसे हो सकता है कि 100 फीसदी  एफडीआई देश के लिए लाभदायक हो और 51  एफडीआई हानिकारक हो?
एफडीआई के विरोध के सुर कांग्रेस के भीतर से भी आ रही हैं. यह किसी मुद्दे सहमति या असहमति का सही तरीका है. इसमें कोई दो राय नहीं कि एफडीआई देश के लिए घातक साबित हो सकता है और इस पर सोच समझ कर ही फैसला लेना चाहिए. लेकिन भाजपा के पास विरोध का कोई ठोस कारण नजर नहीं आता. विपक्ष को यह बात समझनी चाहिए कि संसद में उसकी भूमिका रचनात्मक बहस के लिए होनी चाहिए. विरोध के लिए किसी मुद्दे का विरोध करना उचित नहीं. भाजपा के रुख से लगता है कि कि वह एफडीआई का नहीं कांग्रेस का विरोध कर रही है,

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